बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शनसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - ६
भारतीय दर्शन का सामान्य परिचय
प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
अथवा
भारतीय दर्शन की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? विवेचना कीजिए।
उत्तर-
भारतीय दर्शन का अर्थ
भारतीय दर्शन का शाब्दिक अर्थ बहुत ही विस्तृत है कुछ व्यक्ति भारतीय दर्शन का अर्थ 'हिन्दू दर्शन' से मानते हैं जो गलत है क्योंकि भारतीय दर्शन के अन्तर्गत हिन्दू अहिन्दू सभी विचारधाराओं का समावेश है। सभी प्राचीन तथा आधुनिक दार्शनिक विचारधाराएँ भारतीय दर्शन में देखने को मिलती हैं। इसमें वेद, उपनिषद्, कुरान, गीता, चार्वाक, जैन दर्शन, बौद्ध दर्शन, मीमांसा दर्शन, वेदान्त दर्शनों आदि सभी का अध्ययन किया जाता है। अतः भारतीय दर्शन को किसी एक अर्थ के साथ जोड़कर उसे संकुचित नहीं कर सकते।
भारतीय दर्शन का प्रमुख सिद्धान्त तत्व या सत्य को जानना है उसे देखना है अतः इसे दर्शन कहा जाता है। कुछ व्यक्ति इसे 'सम्यक् दर्शन' भी मानते हैं। 'सम्यक् दर्शन' से तात्पर्य है कि मनुष्य इतना ज्ञान प्राप्त कर लेता है कि वह ज्ञान का अंश बन जाता है।
मनु के अनुसार - "सम्यक् दर्शन प्राप्त होने पर कर्म मनुष्य को बन्धन में नहीं डाल सकते, जिनको यह सम्यक् दृष्टि नहीं है वे ही संसार के मायाजाल में फँसे रहते हैं।"
भारतीय दर्शनशास्त्र दर्शन के निम्नलिखित अंगों का अध्ययन करता है-
१. तत्व विज्ञान (Metaphysic or ontology), २. प्रमाण विज्ञान (Theory of knowledge), ३. विश्व विज्ञान (Cosmology), ४. ईश्वर विज्ञान (Theology), ५. नीति विज्ञान (Ethics), ६. तर्क विज्ञान (Logic).
भारतीय दर्शनशास्त्र में दर्शन का महत्वपूर्ण स्थान है कुछ व्यक्ति तो यहाँ तक मानते हैं कि प्रत्येक भारतीय जन्म से ही दार्शनिक पैदा होता है।
भारतीय दर्शनशास्त्र में जितने भी दार्शनिक मतों का विकास हुआ है उनकी स्थापना खंड़-मंडन विधि से हुई है।
भारतीय दर्शन में देश तथा काल को अनादि और अनन्त माना गया है भारतीय दर्शन सृष्टि के काल की माप ब्रह्मा के दिनों की जाती है। ब्रह्मा को एक दिन १००० युग अर्थात् ४३,२०,००० वर्ष के समान होता है। उस समय ब्रह्म की रात आरम्भ होती जिसे प्रलय कहा जाता है।
भारतीय दर्शन में बहुत सी दार्शनिक विचारधाराएँ हैं जिन्हें आस्तिक व नास्तिक दो रूपों में बॉटा जाता है।
नास्तिक दर्शन के भीतर तीन नाम प्रमुख है-
१. चार्वाक दर्शन, २. बौद्ध दर्शन, ३. जैन दर्शन।
आस्तिक दर्शन में छः दार्शनिक विचारधाराएँ आती है-
१. न्याय दर्शन, २. वैशेषिक दर्शन, ३. सांख्य दर्शन, ४. योग दर्शन, ५. मीमांसा दर्शन, ६. वेदान्त दर्शन।
न्याय और वैशेषिक छोटे-मोटे भेदों के होने के बाद भी प्रकृति आत्मा और ईश्वर को मानते हैं।
सांख्य और योग दर्शन प्रकृति और पुरुष के विषय में सम्प्रतिपत्ति है सांख्य निरीश्वरवादी है और योग ईश्वरवादी।
मीमांसा के दो सम्प्रदाय हैं इसमें से एक के प्रवर्तक कुमारिल भट्ट हैं और दूसरे के प्रवर्तक आचार्य प्रभाकर हैं।
चार्वाक भौतिकवादी हैं वे केवल भू-द्रव्य को मानते हैं आत्मा और ईश्वर को नहीं मानते।
बौद्ध परिवर्तनवादी हैं अर्थात् परिवर्तन को मानते हैं तथा नित्यता के सत्य को नहीं मानते हैं।
जैन द्वैतवादी हैं और जीव अजीब के अस्तित्व को मानते हैं जैन निरीश्वरवादी है।
चार्वाक, बौद्ध और जैन इसलिए नास्तिक कहे जाते हैं क्योंकि ये वेदों को प्रमाण नहीं मानते। समस्त दर्शनशास्त्र के दार्शनिक विचारों में समानता पाई जाती है जिन्हें हम भारतीय दर्शन की सामान्य . विशेषतायें कहते हैं ये निम्न हैं-
१. समस्त भारतीय दर्शनों में वेद, उपनिषद् को भारत का आदि साहित्य माना है केवल चार्वाक, जैन बौद्ध दर्शन ने इन्हें नहीं माना फिर भी नास्तिक स्कूल पर भी आस्तिक स्कूल का प्रभाव दिखाई पड़ता है।
२. भारतीय दर्शनों का सामान्य उद्देश्य सत्यम् शिवम् सुन्दरम् को प्राप्त करना है, तथा दर्शन का उद्देश्य परमतम तत्व का अन्तिम सत्य ही व्याख्या करना है।
३. भारतीय दर्शन के अनुसार, आध्यात्मिक असंतोष से दर्शन का जन्म होता है केवल जिज्ञासा से नहीं होता अर्थात् दार्शनिक विचारों की उत्पत्ति जानने की इच्छा से होती है।
४. भारतीय दर्शन में निराशावाद प्रारम्भिक अवस्था होती है अन्तिम अवस्था आशावाद है।
५. भारतीय दर्शन में विश्व की शाश्वत नैतिक व्यवस्था पर विश्वास किया जाता है। चार्वाक दर्शन ही उसका विपरीत रूप है।
६. भारतीय दर्शन में धर्म को अधिक प्रधानता दी गई है।
७. भारतीय दर्शनशास्त्र में विशेषकर चार्वाक दर्शन में संसार को एक रंगमंच माना गया है।
८. भारतीय दर्शन में आत्म नियंत्रण, आत्म संयम को महत्वपूर्ण या आवश्यक बताया है।
९. भारतीय दर्शन के अनुसार अज्ञान ही बन्धनों का कारण है तथा अज्ञान को समाप्त करके बन्धनों को समाप्त किया जा सकता है।
१०. भारतीय दर्शन के अनुसार, अज्ञानता को दूर करने के लिए निदिध्यासन (Meditation) की आवश्यकता होती है।
११. भारतीय दर्शन में अज्ञान और मोक्ष प्राप्त करने को ही जीवन का अन्तिम उद्देश्य माना गया है।
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- प्रश्न- वेद के ब्राह्मणों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- ऋग्वेद के वर्ण्य विषय का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- किसी एक उपनिषद का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- ब्राह्मण साहित्य का परिचय देते हुए, ब्राह्मणों के प्रतिपाद्य विषय का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- 'वेदाङ्ग' पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- उपनिषद् से क्या अभिप्राय है? प्रमुख उपनिषदों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- संहिता पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वेद से क्या अभिप्राय है? विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- उपनिषदों के महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- ऋक् के अर्थ को बताते हुए ऋक्वेद का विभाजन कीजिए।
- प्रश्न- ऋग्वेद का महत्व समझाइए।
- प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण के आधार पर 'वाङ्मनस् आख्यान् का महत्व प्रतिपादित कीजिए।
- प्रश्न- उपनिषद् का अर्थ बताते हुए उसका दार्शनिक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- आरण्यक ग्रन्थों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- ब्राह्मण-ग्रन्थ का अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- आरण्यक का सामान्य परिचय दीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- देवता पर विस्तृत प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तों में से किसी एक सूक्त के देवता, ऋषि एवं स्वरूप बताइए- (क) विश्वेदेवा सूक्त, (ग) इन्द्र सूक्त, (ख) विष्णु सूक्त, (घ) हिरण्यगर्भ सूक्त।
- प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में स्वीकृत परमसत्ता के महत्व को स्थापित कीजिए
- प्रश्न- पुरुष सूक्त और हिरण्यगर्भ सूक्त के दार्शनिक तत्व की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- वैदिक पदों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 'वाक् सूक्त शिवसंकल्प सूक्त' पृथ्वीसूक्त एवं हिरण्य गर्भ सूक्त की 'तात्त्विक' विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में प्रयुक्त "कस्मै देवाय हविषा विधेम से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- वाक् सूक्त का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
- प्रश्न- वाक् सूक्त अथवा पृथ्वी सूक्त का प्रतिपाद्य विषय स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- वाक् सूक्त में वर्णित् वाक् के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- वाक् सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
- प्रश्न- पुरुष सूक्त में किसका वर्णन है?
- प्रश्न- वाक्सूक्त के आधार पर वाक् देवी का स्वरूप निर्धारित करते हुए उसकी महत्ता का प्रतिपादन कीजिए।
- प्रश्न- पुरुष सूक्त का वर्ण्य विषय लिखिए।
- प्रश्न- पुरुष सूक्त का ऋषि और देवता का नाम लिखिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। शिवसंकल्प सूक्त
- प्रश्न- 'शिवसंकल्प सूक्त' किस वेद से संकलित हैं।
- प्रश्न- मन की शक्ति का निरूपण 'शिवसंकल्प सूक्त' के आलोक में कीजिए।
- प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त में पठित मन्त्रों की संख्या बताकर देवता का भी नाम बताइए।
- प्रश्न- निम्नलिखित मन्त्र में देवता तथा छन्द लिखिए।
- प्रश्न- यजुर्वेद में कितने अध्याय हैं?
- प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त के देवता तथा ऋषि लिखिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। पृथ्वी सूक्त, विष्णु सूक्त एवं सामंनस्य सूक्त
- प्रश्न- पृथ्वी सूक्त में वर्णित पृथ्वी की उपकारिणी एवं दानशीला प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- पृथ्वी की उत्पत्ति एवं उसके प्राकृतिक रूप का वर्णन पृथ्वी सूक्त के आधार पर कीजिए।
- प्रश्न- पृथ्वी सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
- प्रश्न- विष्णु के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विष्णु सूक्त का सार लिखिये।
- प्रश्न- सामनस्यम् पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सामनस्य सूक्त पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। ईशावास्योपनिषद्
- प्रश्न- ईश उपनिषद् का सिद्धान्त बताते हुए इसका मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- 'ईशावास्योपनिषद्' के अनुसार सम्भूति और विनाश का अन्तर स्पष्ट कीजिए तथा विद्या अविद्या का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- वैदिक वाङ्मय में उपनिषदों का महत्व वर्णित कीजिए।
- प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के प्रथम मन्त्र का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के अनुसार सौ वर्षों तक जीने की इच्छा करने का मार्ग क्या है।
- प्रश्न- असुरों के प्रसिद्ध लोकों के विषय में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- परमेश्वर के विषय में ईशावास्योपनिषद् का क्या मत है?
- प्रश्न- किस प्रकार का व्यक्ति किसी से घृणा नहीं करता? .
- प्रश्न- ईश्वर के ज्ञाता व्यक्ति की स्थिति बतलाइए।
- प्रश्न- विद्या एवं अविद्या में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- विद्या एवं अविद्या (ज्ञान एवं कर्म) को समझने का परिणाम क्या है?
- प्रश्न- सम्भूति एवं असम्भूति क्या है? इसका परिणाम बताइए।
- प्रश्न- साधक परमेश्वर से उसकी प्राप्ति के लिए क्या प्रार्थना करता है?
- प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् का वर्ण्य विषय क्या है?
- प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- भारतीय दर्शन एवं उसके भेद का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
- प्रश्न- जैन दर्शन का नया विचार प्रस्तुत कीजिए तथा जैन स्याद्वाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या अभिप्राय है? बौद्ध धर्म के साहित्य तथा प्रधान शाखाओं के विषय में बताइये तथा बुद्ध के उपदेशों में चार आर्य सत्य क्या हैं?
- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
- प्रश्न- जैन दर्शन का सामान्य स्वरूप बताइए।
- प्रश्न- क्या बौद्धदर्शन निराशावादी है?
- प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- विविध दर्शनों के अनुसार सृष्टि के विषय पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- तर्क-प्रधान न्याय दर्शन का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- योग दर्शन से क्या अभिप्राय है? पतंजलि ने योग को कितने प्रकार बताये हैं?
- प्रश्न- योग दर्शन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मीमांसा का क्या अर्थ है? जैमिनी सूत्र क्या है तथा ज्ञान का स्वरूप और उसको प्राप्त करने के साधन बताइए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन में ईश्वर पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- षड्दर्शन के नामोल्लेखपूर्वक किसी एक दर्शन का लघु परिचय दीजिए।
- प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। श्रीमद्भगवतगीता : द्वितीय अध्याय
- प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के अनुसार आत्मा का स्वरूप निर्धारित कीजिए।
- प्रश्न- 'श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के आधार पर कर्म का क्या सिद्धान्त बताया गया है?
- प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता द्वितीय अध्याय के आधार पर श्रीकृष्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए?
- प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता को कितने अध्यायों में बाँटा गया है? इसके नाम लिखिए।
- प्रश्न- महर्षि वेदव्यास का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता का प्रतिपाद्य विषय लिखिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( आरम्भ से प्रत्यक्ष खण्ड)
- प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं पदार्थोद्देश निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं द्रव्य निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं गुण निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं प्रत्यक्ष प्रमाण निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- अन्नम्भट्ट कृत तर्कसंग्रह का सामान्य परिचय दीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन एवं उसकी परम्परा का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार प्रत्यक्ष प्रमाण को समझाइये।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के आधार पर 'गुणों' का स्वरूप प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- न्याय तथा वैशेषिक की सम्मिलित परम्परा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- न्याय-वैशेषिक के प्रकरण ग्रन्थ का विवेचन कीजिए॥
- प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान प्रमाण की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( अनुमान से समाप्ति पर्यन्त )
- प्रश्न- 'तर्कसंग्रह ' अन्नंभट्ट के अनुसार अनुमान प्रमाण की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- तर्कसंग्रह के अनुसार उपमान प्रमाण क्या है?
- प्रश्न- शब्द प्रमाण को आचार्य अन्नम्भट्ट ने किस प्रकार परिभाषित किया है? विस्तृत रूप से समझाइये।